कारण-शरीर’ और ‘सूक्ष्म-शरीर’ कैसे बनते हैं। और
आत्मा के साथ इनका सम्बन्ध कब तक रहता है?
कारण शरीर ”प्रकृति” का नाम है। सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, इन तीनों के समुदाय का नाम प्रकृति है। ये सूक्ष्मतम कण हैं। उसी का नाम ‘कारण-शरीर’ है। स अब उस प्रकृति रूपी कारण शरीर से दूसरा जो शरीर उत्पन्न हुआ, उसका नाम ‘सूक्ष्म शरीर’ है। आपने शरीर पर सूती कुर्ता (कपड़ा( पहन रखा है। इसका कारण है धागा। और धागे का कारण है- रूई। रूई, धागा और कॉटन-कुर्ता ये तीन वस्तु हो गयीं। कुर्ता, धागा और रूई, तो ऐसे तीन शरीर हैं- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर। स्थूल शरीर है कुर्ता, सूक्ष्म शरीर है धागा, और कारण शरीर है- रूई। स जो संबंध कुर्ते, धागे और रूई में है, वो ही संबंध इन तीनों शरीर में है। क्या रूई के बिना धागा बन जायेगा, और क्या धागे के बिना कुर्ता बनेगा? कारण शरीर के बिना सूक्ष्म शरीर नहीं बनेगा। सूक्ष्म शरीर के बिना स्थूल शरीर नहीं बनेगा। कहा हैः- कारण शरीर प्रकृति सत्त्वरजसतमः। सत्त्व, रज और तम से अठारह चीजें बनी। उसका नाम है- सूक्ष्म शरीर। स सृष्टि के आरंभ में जब भगवान ने ये सारी दुनिया बनायी तो कारण शरीर प्रकृति से अठारह पदार्थ उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- बु(ि, अहंकार, मन, पाँच ज्ञान- इन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच तन्मात्रा। इनका नाम सूक्ष्म शरीर है। ये सारे पदार्थ प्रकृति से बनते हैं। रूप,रस, गंध आदि पाँच तन्मात्राओं से पाँच महाभूत बनते हैं। जल, वायु, पृथ्वी, अग्नि, आकाश, इन पाँच महाभूतों के नाम है। इन्हीं पाँच पदार्थों का समुदाय ये स्थूल शरीर है। जो आपको आँख से दिखता है, वो स्थूल रूप। तो ये इन तीनों का संबंध है। स जब तक जीवात्मा पुर्नजन्म धारण करेगा, यानी एक शरीर छोड़ दिया, दूसरा शरीर धारण कर लिया, तो स्थूल शरीर छूट जायेगा। अतः मृत्यु होने पर ये छूट जायेगा। सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर, ये दोनों जीवात्मा के साथ जुड़े रहेंगे। पुर्नजन्म हुआ फिर नया स्थूल शरीर मिल गया, फिर अगला शरीर, फिर अगला। जब तक मुक्ति नहीं होगी तब तक सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर साथ रहेगा। जब मुक्ति हो जायेगी तब तीनों शरीर छूट जायेंगे। धागा वही रहता है, कुर्ते बदलते रहते हैं। स सूक्ष्म-शरीर और कारण-शरीर तब तक साथ रहेंगे, जब तक पुर्नजन्म होता रहेगा। जब मोक्ष हो जायेगा तब तीनों दूर हो जायेंगे। अथवा मोक्ष नहीं हुआ और आ गई प्रलय तो प्रलय में तीनों शरीर छूट जायेगा। स्थूल शरीर तो वैसे ही थोड़े-थोड़े दिनों में छूटते रहता हैं। तब सूक्ष्म शरीर भी टूट-फूट कर नष्ट हो जायेगा और कारण शरीर रूपी प्रकृति बचेगी। सूक्ष्म शरीर वापस टूट-फूट कर कारण शरीर के रूप में परिवर्तित हो जायेगा। जैसे मिट्टी का हमने ढ़ेला लिया और उसकी ईंट पका ली और फिर ईंट तोड़कर वापस मिट्टी बना दी, तो वापस ये मिट्टी बन गई यानि कारण शरीर बन गया। जीवात्मा प्रलय के समय तो अलग हो गया पर मुक्ति नहीं मिली। फिर एक नयी सृष्टि बनेगी, तो उसके साथ जीवात्मा को ईश्वर फिर दोबारा जोड़ देगा। तब तक वह बंधन की स्थिति में है। जब तक मोक्ष न हो जाये अथवा प्रलय न हो जाये तब तक ये दोनों शरीर आत्मा के साथ जुड़े रहेंगे। मोक्ष में या प्रलय में ये छूट जायेंगे। मोक्ष होने पर तो फिर हजारों सृष्टियों तक ये तीनों शरीर फिर जुड़ते नहीं हैं। स अब रही बात राग और द्वेष की। राग और द्वेष भी जीवात्मा की शक्ति है। राग और द्वेष दो प्रकार का है :- एक स्वाभाविक और दूसरा नैमित्तिक। जो स्वाभाविक राग-द्वेष है, वो जीवात्मा से नहीं छूटेगा। वो मुक्ति में भी जीवात्मा में रहेगा। और स्वाभाविक राग-द्वेष में रहते-रहते मुक्ति हो जायेगी। इसमें कोई आपत्ति नहीं है, कोई बाधा नहीं है। जो नैमित्तिक राग-द्वेष है, वो बाधक है। उसे हटाना पड़ेगा, मुक्ति में वो छूट जायेगा। स स्वाभाविक राग-द्वेष क्या है? और नैमित्तिक राग-द्वेष क्या है? उत्तर है कि जीवात्मा को हमेशा सुख चाहिये। यह उसको सूक्ष्म राग है। ये स्वाभाविक राग है। ये मुक्ति में बाधक नहीं है। जीवात्मा को दुःख कभी भी नहीं चाहिये। दुःख में उसको स्वाभाविक द्वेष है। ये भी मुक्ति में बाधक नहीं। ये स्वाभाविक राग और द्वेष रहेंगे, मुक्ति हो जायेगी। कोई परवाह नहीं। स अमुक व्यक्ति ने मेरी हानि कर दी, मैं उसकी गर्दन तोडूँगा, ये सोचना नैमित्तिक द्वेष है। खीर, पूड़ी, लड्डू, हलुआ मुझे मिलना चाहिये, मुझे अधिक मिलना चाहिये, उसको कम, ये सोच नैमित्तिक राग है। ये मुक्ति में बाधक है। ये हट जायेगा, फिर मुक्ति होगी। इसके रहते मुक्ति नहीं होगी। इसको छोड़ देंगे तो मुक्ति हो जायेगी
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