Monday 21 February 2011

Paltu sahab


सुनो ये अद्भुत बचन—
कौन करे बनियाई, अब मोरे कौन करे बनियाई।
त्रिकुटी में है भरती मेरी, सुखमन में है गादी।
दसवें द्वारे कोठी मेरी, बैठा पुरूष अनादि।
इंगला-पिंगला पलरा दूनौं, लागी सुरति की जोति।
सत सबद की डांडी पकरौं, तौलौं भर-भर मोती।
चाँद-सूरज दोउ करें रखवारी, लगी सत ही ढेरी।
तुरिया चढी के बेचन लागा, ऐसी साहिबी मेरी।
सत गुरु साहिब किहा सिपारस, मिली राम मुदियाई।
पलटू के घर नौबत बाजत, निति उठ होति सबाई।
तीसरी बात जो पता है उनके संबंध में वे दो भाई थे। और दोनों ही पलटू हो गये। बाहर के धन की फिक्र छोड़ दी और भीतर का धन खोजने लगे। खोजने ही नहीं लगे खोज ही लिया।
दोनों भाई बदल गए। बदलने के कारण गुरु ने दोनों को पलटू नाम दे दिया। एक भाई को पलटू प्रसाद और दूसरे भाई को पलटू दास। यह शब्‍द बड़ा प्‍यारा दिया गुरु ने ‘’पलटू’’ ईसाई जिसको कन्वर्शन कहते है। पलट गए। कहीं जाते थे और ठीक उलटे चल पड़े। और ऐसे पलटे कि क्षण में दूसरे हो गये। कोई देर दार नहीं की। सोच-विचार नहीं किया। कहां बाजरा में गादी लगा केर बैठे थे और कहां सूक्ष्म में गादी लगा दी। कहां तोलते थे—आनाज तौलते थे। और कहां ‘सत शब्‍द की ढेरी’। ये तौलने लगे। और कहां साधारण चीजें बेचते थे और कहां बेचने लगे तुरिया: समाधि बेचने लग गये। ऐसा रूपांतरण था कि गुरु ने कहा कि तुम बिलकुल ही पलट गए। ऐसा मुश्‍किल से होता है। यह क्रांति थी।
‘पलटू’ नाम का अर्थ होता है क्रांति। एक बड़ी अपूर्व क्रांति हुई। यह नाम भी बड़ा प्‍यारा है। असली नाम का तो कुछ पता नहीं है। असली नाम यानी मां-बाप ने जो नाम दिया था। उस नाम का तो कुछ पता नहीं है। गुरु ने जो नाम दिया था वह यह था। और गुरु ने खूब प्‍यारा नाम दिया। बड़ा सांकेतिक नाम दिया। दो-दो चार-चार पैसे के लिए दुकान करते रहे होंगे। और जब पलट गए तो ऐसी क्रांति घटी।
उनके भाई पलटू प्रसाद ने पलटू के संबंध में कुछ वचन लिखे है:
नंगा जलाल पुर जन्‍म भयो है, बसै अवध के खोर।
कहै पलटू प्रसाद हो भयो, जगत में सोर।।
चार वरण की मेटिके भक्‍ति चलाई मूल।
गुरु गोविंद गे बाग़ में पलटू फूले फूल।
गरीब गांव में पैदा हुए थे, नाम ही था: नंगा जलाल पुर। तुम सोच ही सकते हो: नंगा जलाल पुर। गरीबों का गांव होगा। बिलकुल नंगों का गांव होगा। और जा कर बस गये अवध में अयोध्‍या में बस गए। गृहस्‍थ पैदा हुए थे। फिर संन्‍यस्‍त हो गए। धन, पद, मद, में डूबे थे—फिर एक दिन राम की महिमा में उतर गए।
पलटू के शब्‍द ऐसे है जैसे आग्‍नेय है। जैसे कबीर दास के। बड़े ऊंचे घाट के शब्‍द हे और बड़े चोट करने वाले। ठीक अगर कबीर के साथ किसी दूसरे को हम खड़ा कर सकें, तो वह है पलटू बनिया। इसमें कोई अतिशयोक्‍ति नहीं हे। तुम जब उनके पदों में उतरोगे। तुम भी पाओगे। बड़ी ऊंची बात और बड़ी सचोट है। ह्रदय मे उतर जाए। तुम्‍हारे पोर-पोर में भर जाए—ऐसी बात है। रसपूर्ण भी उतनी ही जितनी सचोट। मस्ती भी उतनी ही जैसी कबीर की। एक-एक शब्‍द से खूब शराब झरती है। डुबकी लेना।

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