Monday 21 February 2011

MILK & KAMVASNA

दूध असल में अत्‍यधिक कामोत्तेजक आहार है और मनुष्‍य को छोड़कर पृथ्‍वी पर कोई पशु इतना कामवासना से भरा हुआ नहीं है। और उसका एक कारण दूध है। क्‍योंकि कोई पशु बचपन के कुछ समय के बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ आदमी को छोड़ कर। पशु को जरूरत भी नहीं है। शरीर का काम पूरा हो जाता है। सभी पशु दूध पीते है अपनी मां का, लेकिन दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ आदमी पीता है और वह भी आदमी की माताओं का नहीं जानवरों की माताओं का भी पीता है।
दूध बड़ी अदभुत बात है, और आदमी की संस्‍कृति में दूध ने न मालूम क्‍या-क्‍या किया है, इसका हिसाब लगाना कठिन है। बच्‍चा एक उम्र तक दूध पिये,ये नैसर्गिक है। इसके बाद दूध समाप्‍त हो जाना चाहिए। सच तो यह है, जब तक मां का स्‍तन से बच्‍चे को दूध मिल सके, बस तब तक ठीक हे। उसके बाद दूध की आवश्‍यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्‍चे का शरीर बन गया। निर्माण हो गया—दूध की जरूरत थी, हड्डी थी, खून था, मांस बनाने के लिए—स्‍ट्रक्‍चर पूरा हो गया, ढांचा तैयार हो गया। अब सामान्‍य भोजन काफी है। अब भी अगर दूध दिया जाता है तो यह सार दूध कामवासना का निर्माण करता है। अतिरिक्‍त है। इसलिए वात्‍सायन ने काम सूत्र में कहा है कि हर संभोग के बाद पत्‍नी को अपने पति को दूध पिलाना चाहिए। ठीक कहा है।
दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य बनाता है, और कोई चीज नहीं बनाती। क्‍योंकि दूध जिस बड़ी मात्रा में खून बनाता है और कोई चीज नहीं बनाती। खून बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है। तो दूध से निर्मित जो भी है, वह कामोतेजक है। इसलिए महावीर ने कहा है,वह उपयोगी नहीं है। खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक के लिए खतरनाक है। ठीक से,काम सुत्र में और महावीर की बात में कोई विरोध नहीं है। भोग के साधक के लिए सहयोगी है, तो योग के साधक के लिए अवरोध है। फिर पशुओं का दूध है वह, निश्‍चित ही पशुओं के लिए,उनके शरीर के लिए, उनकी वीर्य ऊर्जा के लिए जितना शक्‍ति शाली दूध चाहिए। उतना पशु मादाएं पैदा करती है।
जब एक गाए दूध पैदा करती है तो आदमी के बच्‍चे के लिए पैदा नहीं करती, सांड के लिए पैदा करती है। ओर जब आदमी का बच्‍चा पिये उस दूध को और उसके भीतर सांड जैसी कामवासना पैदा हो जाए, तो इसमें कुछ आश्‍चर्य नहीं है। वह आदमी का आहार नहीं है। इस पर अब वैज्ञानिक भी काम करते है। और आज नहीं कल हमें समझना पड़ेगा कि अगर आदमी में बहुत सी पशु प्रवृतियां है तो कहीं उनका कारण पशुओं का दूध तो नहीं है। अगर उसकी पशु प्रवृतियों को बहुत बल मिलता है तो उसका करण पशुओं का आहार तो नहीं है।
आदमी का क्‍या आहार है, यह अभी तक ठीक से तय नहीं हो पाया है, लेकिन वैज्ञानिक हिसाब से अगर आदमी के पेट की हम जांच करें, जैसाकि वैज्ञानिक किये है। तो वह कहते है , आदमी का आहार शाकाहारी ही हो सकता है। क्‍योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में जितना बड़ा इंटेस्‍टाइन की जरूरत होती है, उतनी बड़ी इंटेस्टाइन आदमी के भीतर है। मांसाहारी जानवरों की इंटेस्‍टाइन छोटी और मोटी होती है। जैसे शेर, बहुत छोटी होती है। क्‍योंकि मांस पचा हुआ आहार है, अब बड़ी इंटेस्‍टाइन की जरूरत नहीं है। पचा-पचाया है, तैयार है। भोजन। उसने ले लिया, वह सीधा का सीधा शरीर में लीन हो जायेगा। बहुत छोटी पाचन यंत्र की जरूरत है।
इसलिए बड़े मजे की बात है कि शेर चौबीस घंटे में एक बार भोजन करता है। काफी है। बंदर शाकाहारी है, देखा आपने उसको। दिन भर चबाता रहता है। उसका इंटेस्‍टाइन बहुत लंबी है। और उसको दिन भर भोजन चाहिए। इसलिए वह दिन भर चबाता रहता है।
आदमी की भी बहुत मात्रा में एक बार एक बार खाने की बजाएं, छोटी-छोटी मात्रा में बहुत बार खाना उचित है। वह बंदर का वंशज है। और जितना शाकाहारी हो भोजन उतना कम उतना कम कामोतेजक हे। जितना मांसाहारी हो उतना कामोतेजक होता जाएगा।
दूध मांसाहार का हिस्‍सा है। दूध मांसाहारी है, क्‍योंकि मां के खून और मांस से निर्मित होता है। शुद्धतम मांसाहार है। इसलिए जैनी, जो अपने को कहते है हम गैर-मांसाहारी है, कहना नहीं चाहिए, जब तक वे दूध न छोड़ दे।
केव्‍कर ज्‍यादा शुद्ध शाकाहारी है क्‍योंकि वे दूध नहीं लेते। वे कहते है, दूध एनिमल फूड हे। वह नहीं लिया जा सकता। लेकिन दूध तो हमारे लिए पवित्रतम है, पूर्ण आहार है। सब उससे मिल जाता है, लेकिन बच्‍चे के लिए, और वह भी उसकी अपनी मां का। दूसरे की मां का दूध खतरनाक है। और बाद की उम्र में तो फिर दूध-मलाई और धी और ये सब और उपद्रव है। दूध से निकले हुए। मतलब दूध को हम और भी कठिन करते चले जाते है, जब मलाई बना लेते है। फिर मक्खन बना लेते है। फिर घी बना लेते है। तो घी शुद्धतम कामवासना हो जाती है। और यह सब अप्राकृतिक है और इनको आदमी लिए चला जाता है। निश्‍चित ही, उसका आहार फिर उसके आचरण को प्रभावित करता है।
तो महावीर ने कहा है, सम्‍यक आहार,शाकाहारी,बहुत पौष्‍टिक नहीं केवल उतना जितना शरीर को चलाता है। ये सम्‍यक रूप से सहयोगी है उस साधक के लिए, जो अपनी तरफ आना शुरू हुआ।
शक्‍ति की जरूरत है, दूसरे की तरफ जाने के लिए शांति की जरूरत है, स्‍वयं की तरफ आने के लिए। अब्रह्मचारी,कामुक शक्‍ति के उपाय खोजेगा। कैसे शक्‍ति बढ़ जाये। शक्‍ति वर्द्धक दवाइयां लेता रहेगा। कैसे शक्‍ति बढ़ जाये। ब्रह्मचारी का साधक कैसे शक्‍ति शांत बन जाए,इसकी चेष्‍टा करता रहेगा। जब शक्‍ति शांत बनती है तो भीतर बहती है। और जब शांति भी शक्‍ति बन जाती है तो बाहर बहनी शुरू हो जाती है।

10 comments:

  1. faltu bat duniya mein aay hai ek bar sub kuch khao pagal ho yeh nov veg hai jo krishn bhi makhan khate the jo dudha se banta tha

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    1. PAGLO JESI BAAAT MT KR MILK 100% MANSAHAR HAI BCOZ USME HIMOGLOBINE HOTA AHAI

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  2. ARRE BHAI TO KRISHNA JEE BHI SHUDHA SHAKAHAR NAI HAI WO B MASAHAR K SHIKAR HAI ANDHVISHWAS KI NAJRO SE NAHI VEGYANIK NAZRO SE DEKHO TO DUDH MANSAHAR HAI BCOZ USME 100% HIMOGLOBINE HOTA HAI

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