Thursday 31 October 2013

५. अग्निवीर ईश्वर की सच्ची उपासना करने, आध्यात्मिक उन्नति करने, और जीवन में यथार्थ सुख और आनंद प्राप्त करने के लिए अष्टांग योग में विश्वास रखता है|
यम - अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य
नियम -शौच(शरीर और मन की शुद्धि), संतोष(संतुष्ट और प्रसन्न रहना), तप(स्वयं से अनुशाषित रहना), स्वाध्याय(आत्मचिंतन करना), ईश्वर-प्रणिधान(ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, पूर्ण श्रद्धा)
आसन -ईश्वर के ध्यान में लंबे समय तक शांत और स्थिर बैठना
प्राणायाम – आसन में बैठने के बाद श्वास लेने सम्बन्धी खास तकनीकों द्वारा प्राण पर नियंत्रण करना
प्रत्याहारमन को बाहरी अशांति से अलग कर इन्द्रियों को अंतर्मुखी करना
धारणा – मन को हदय या मस्तक जैसे किसी स्थान पर स्थिर कर ईश्वर का ध्यान करना
ध्यान  - कोई एक स्थान पर मन को स्थिर करने के बाद वेद मंत्र या अन्य शब्दों के माध्यम से इश्वर का अनुभव करने के लिए इश्वर के गुण-कर्म स्वभाव का निरंतर चिंतन करना
समाधि – ईश्वर का ध्यान धरे रहने से जब इश्वर की अनुभूति होती है, ऐसी अवस्था
६. अग्निवीर विकासमूलक और प्रेम भरे अभिगम में विश्वास रखता है, और मानता है कि द्वेषपूर्ण अभिगम अपनाने से द्वेष का ही सामना करना पड़ता है| इसलिए अग्निवीर का अभिगम सदा से ही प्रामाणिक तरीके से बौद्धिक और भावात्मक जागरूकता फ़ैलाना है|
७. अग्निवीर जन्म पर आधारित जाति-व्यवस्था का सख्त विरोधी है| अग्निवीर जाति-व्यवस्था को समर्थन देने वाले सभी लोगों का भी सख्त विरोधी है| अग्निवीर मानता है कि जो लोग जाति-व्यवस्था की आड़ में रहकर सामाजिक और राजनैतिक हकों की समानता का लाभ कुछ ही ‘उच्च’ वर्ग के लोगों के लिए सीमित कर देना चाहते है, वो सभी लोग, सभ्य समाज और मानवता के शत्रु हैं| अग्निवीर उन सभी लोगों के साथ साथ इस शर्मनाक जाति-व्यवस्था को समर्थन देने वाले सभी गलत ग्रंथो का भी अस्वीकार करता है|
८. अग्निवीर उन सभी विकृत लोगों और उनके विकृत ग्रंथो का सख्त विरोधी है जो यह मानते है कि स्त्रियों के अधिकार पुरुषों के अधिकारों की तुलना में निम्न और गौण होने चाहिए| वेदों में स्त्रियों को बहुत ऊँचा स्थान दिया गया है| और जो लोग यह बात को नहीं मानते वो सभी मानवता के सबसे बड़े शत्रु है|
९. अग्निवीर – ‘मातृवत परदारेषु’ – पत्नी के सिवाय सभी स्त्री माता समान है – सिद्धांत में दृढ़ विश्वास रखता है| अग्निवीर संप्रदाय, जाति, समाज या दूसरी कोई मानव निर्मित हदों को ध्यान में न लेते हुए, उन सभी लोगों को अपराधी ठहरता है जो ‘मातृवत परदारेषु’ के सिद्धांत को नहीं मानते| अग्निवीर आज के ऐसे सभी विज्ञापनों, व्यवसायों, फिल्मों, खेलों और अपराधियों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठित गुटों का भी विरोध करता है, जो स्त्री को केवल मनोरंजन और वासना की वस्तु समझते हैं| अग्निवीर इन गुन्हेगारों के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठित गुटों को समाज में फैला हुआ रोग मानता है|
वेद कहते है कि स्त्रियों का शोषण कर के धन कमाने वाले लोगों को सख्त से सख्त सजा होनी चाहिए| हम स्त्रियों को बुरखे में कैद रखने की प्रथा का भी विरोध करते है| इसके साथ साथ मनोरंजन के नाम पर माता समान स्त्री के व्यापारिक शोषण का भी सख्त विरोध करते हैं|
१०. अग्निवीर ग्रिफिथ और मेक्स मुलर द्वारा किये हुए वेदों के गलत अनुवादों को नहीं मानता| वेदों को समझने के लिए हम अपनी वेबसाईट के डाउनलोड सेक्शन में उपयोगी पुस्तकों का संग्रह करने का प्रयत्न कर रहे है| लेकिन हम ये बात स्पष्ट कर देना चाहते है कि केवल आधुनिक भाषा के प्रयोग से ही वेदों का अर्थघटन संभव नहीं| वैदिक मंत्र सूत्रों के समान होते है| और हर एक मंत्र में गहरा सार छिपा हुआ होता है| इसलिए वैदिक मंत्रो को समझने के लिए गहन अंत:अवलोकन, थोडा संस्कृत भाषा का ज्ञान, और मंत्रो की अनुभूति करने की आवश्यकता होती है| वैदिक मंत्रो को रटने जैसे अन्य कोई यांत्रिक तरीके से उसका अर्थघटन संभव नहीं| वेदों में ना ही कोई इतिहास है और ना ही कोई खास समय पर घटी हुई घटनाओं का वर्णन| वेदों में केवल मूल ज्ञान और सिद्धांतों का समावेश है|
११. कई लोगों का मानना है के अग्निवीर भी आर्य समाज जैसी ही कोई एक संस्था है| पर यह सत्य नहीं है| आज के समय के आर्य समाज के नेताओं के गलत मार्ग अपनाने के कारण आज “आर्य समाज” शब्द अपना मूल अर्थ खो चुका है| पर दयानंद सरस्वती, जो हमारे आदर्श हैं, द्वारा विस्तारपूर्वक प्रस्तुत किए गए आर्य समाज के मूल लक्ष्य के साथ हम एकमत है| इसलिए अगर आप केवल आर्य समाज के सही अर्थ और मूल लक्ष्य को ध्यान में रख कर हमें देखतें है तो हाँ हम “आर्य समाजी” हैं| पर अगर आप हमें आर्य समाज जैसी कोई संस्था के रूप में देखते हैं तो हम “आर्य समाजी” नहीं हैं| इसलिए इस विरोधाभास से दूर रहने के लिए हम “आर्य”, “वैदिक” या फिर “अग्निवीर” के नाम से पहचाने जाना ज्यादा पसंद करते हैं|
१२. अग्निवीर संकुचित मनोवृत्ति में विश्वास नहीं रखता| हम ऐसा दावा कभी नहीं करते कि हमारे वचन ही ईश्वर के अंतिम वचन हैं| इसलिए हम खुले मन से सभी बुद्धिजीवीयों को मुक्त रूप से अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित करते हैं| परन्तु हम जन्म पर आधारित जाति-व्यवस्था, स्त्री हीनता का समर्थन और अपमानजनक टिप्पणियों, इन तीन विषयों पर चर्चा कर समय की बर्बादी करना नहीं चाहते|
१३. आलोचना का अर्थ द्वेष या तिरस्कार नहीं है| हम थोड़े बहुत मतभेदों के कारण अपने माता-पिता और भाई-बहनों के साथ वाद-विवाद करते रहते हैं| और यह स्वाभाविक भी है| पर उसका अर्थ ये नहीं है कि हम अपने परिवारजनों के साथ द्वेषभाव या बैर रखते है| ठीक उसी तरह, आज हमारे पास बड़ी मात्रा में ऐसे लेखों का संग्रह है जो आज की प्रचलित मान्यताओं पर कई सवाल उठाते है| पर हमारी लोगों से विनती है कि ऐसे लेख लिखने के पीछे हमारा उद्देश्य द्वेष या तिरस्कार है ऐसा न मानें|
१४. हां, हम सुधार और परिवर्तन के मार्ग पर हैं| हम इसे “शुद्धि आंदोलन” कहते है| हम सभी लोगों से वैदिक धर्म का स्वीकार कर अपने जीवन में उसका आचरण करने का वचन माँगते है| हम वैदिक धर्म का आचरण करते है, और आगे भी अधिक एकाग्रता और दृढ़ मन से करेंगे| वैदिक धर्म का स्वीकार करने में जाति, संप्रदाय या लिंग का कोई बंधन नहीं है| हम हिंदू, मुस्लिम या फ़िर ईसाई धर्मो को मानने वाले सभी लोगों को, मानवजाति के कल्याण के लिए और स्वयं को शांति, एकता, चरित्र और कर्त्तव्य पालन का आदर्श बनाने के लिए वैदिक धर्म स्वीकार करने को आमंत्रित करते हैं| यह प्रक्रिया असीमित सफलता, प्रतिभा, सुख, जोश, उत्साह, समृद्धि और जीवन के लक्ष्य का द्वार खोलेंगी|
१५. अग्निवीर ना ही कोई एक व्यक्ति है या ना ही कोई व्यक्तियों का समुदाय| अग्निवीर एक विचारधारा है| हम बार-बार “मैं” और “हम” को मिलाते रहते है| क्योंकि हम विचारधाराओं के मेल में विश्वास रखते हैं| “मैं” और “हम” एक ही हैं, उनमें केवल शाब्दिक भिन्नता है| अगर आप हमारे स्वप्न और लक्ष्य के साथ सहमत हैं, तो आप भी हमारे लिए अग्निवीर ही हैं|
हमारी विनती है कि आप अग्निवीर के विषयों को उसके पूरे सन्दर्भ में देखें| आप हम से थोड़े बहुत या पूर्ण रूप से सहमत या असहमत हो सकते हैं| पर केवल इस कारण से बौद्धिक मतभेदों को भावनाओं के मतभेदों में परिवर्तित न होने दें| समग्र मानवजाति हमारे लिए एक परिवार समान है|

हम कभी भी एक दूसरे के प्रति द्वेष न रखें|
हम कभी भी एक दूसरे का बुरा न चाहें|
हम कभी भी एक दूसरे की निंदा न करे और एक दूसरे पर दोष न लगाएं|
हम एक दूसरे से भिन्न होकर भी एक दूसरे के कल्याण की ही कामना करें|
हम परिपक्व बन के बिना शत्रुता के अपने आपको अभिव्यक्त कर सकें|
हम एक परिवार की ही तरह मिलजुल कर रहें और उसका आनंद उठाएं|
जैसे गाय अपने बछड़े को प्रेम करती है ठीक उसी प्रकार हम भी एक दूसरे से प्रेम करते रहें|
शांति, सहनशीलता, सत्य और परस्पर सहयोग हमारे शस्त्र बनें|
सर्वथा शांति की स्थापना हो|

1 comment:

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