Tuesday, 30 November 2010

अंक-16 शिवस्वरोदय

भावार्ध इडा, पिङ्गला और सुषुम्ना तीनों नाड़ियों की सहायता से शरीर के मध्य भाग में प्राणों के संचार को प्रत्यक्ष करना चाहिए। यहाँ शरीर के मध्य के दो अर्थ निकलते हैं- पहला नाभि और दूसरा मेरुदण्ड। 
भावार्थ इडा नाडी बायीं ओर स्थित है तथा पिङ्गला दाहिनी ओर। अतएव इडा को वाम क्षेत्र और पिंगला को दक्षिण क्षेत्र कहा जाता है।
भावार्थ चंद्रमा इडा नाडी में स्थित है और सूर्य पिङ्गला नाडी में तथा सुषुम्ना स्वयं शिव-स्वरूप है। भगवान शिव का वह स्वरूप हंस कहलाता है, अर्थात् जहाँ शिव और शक्ति एक हो जाते हैं और श्वाँस अवरुद्घ हो जाती है। क्योंकि-
भावार्य - तंत्रशास्त्र और योगशास्त्र की मान्यता है कि जब हमारी श्वाँस बाहर निकलती है तो “हं” की ध्वनि निकलती है और जब श्वाँस अन्दर जाती है तो “सः (सो)” की। हं को शिव- स्वरूप माना जाता है और सः या सो को शक्ति-रूप।
भावार्थ - वायीं नासिका से प्रवाहित होने वाला स्वर चन्द्र कहलाता है और शक्ति का रूप माना जाता है। इसी प्रकार दाहिनी नासिका से प्रवाहित होने वाला स्वर सूर्य कहलाता है, जिसे शम्भु (शिव) का रूप माना जाता है। 
भावार्थ श्वास लेते समय विद्वान लोग जो दान देते हैं, वह दान इस संसार में कई करोड़गुना हो जाता है। 
 
 
 

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