Tuesday, 30 November 2010

शिवस्वरोदय

भावार्थ- शुक्ल पक्ष में प्रथम तीन दिन सूर्योदय के समय चन्द्र स्वर प्रवाहित होता है और कृष्ण पक्ष में सूर्य स्वर और तीन-तीन दिन पर इनके उदय का क्रम बदलता रहता है। इस प्रकार स्वरोदय काल का क्रम समझना चाहिए।
भावार्थः पिछले श्लोक में बताए गए क्रम से शुक्ल पक्ष में चन्द्र स्वर और कृष्ण पक्ष में सूर्य स्वर प्रतिदिन क्रम से ढाई-ढाई घटी अर्थात एक-एक घंटे साठ घटियों में प्रवाहित होते हैं यदि उनमें किसी प्रकार का अवरोध न किया जाए। घटी के हिसाब से साठ घटी का दिन-रात होता है। इस प्रकार ढाई घटी का एक घंटा होता है।
भावार्थः प्रत्येक नाड़ी के एक घंटे के प्रवाह काल में पाँचो तत्त्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश का उदय होता है। यदि उपर्युक्त श्लोकों में बताए गए क्रम से प्रातःकाल स्वरों का क्रम न हो तो उन्हें परिवर्तित कर ठीक कर लेना चाहिए, अन्यथा कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए।
भावार्थः- शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को इड़ा तथा कृष्ण-पक्ष की प्रतिपदा को पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए। तब योगी को दत्तचित्त होकर कार्य करना चाहिए। उसमें उसे सफलता मिलती है।
भावार्थः- रात में चन्द्रनाड़ी और दिन में सूर्यनाड़ी को रोकने में जो सफल हो जाता है वह निस्सन्देह योगी है।
भावार्थ- सूर्यनाड़ी द्वारा अर्थात् पिंगला नाड़ी द्वारा सूर्य को अर्थात् शरीर में स्थित प्राण ऊर्जा को नियंत्रित किया जाता है तथा चन्द्र नाड़ी अर्थात् इड़ा नाड़ी द्वारा चन्द्रमा को वश में किया जा सकता है। यहाँ चन्द्रमा मन का संकेतक है। अर्थात् इडा द्वारा मन को नियंत्रित किया जाता है। इस क्रिया को जो जानता है और उसका अभ्यास करके दक्षता प्राप्त कर लेता है, वह तत्क्षण, तीनों लोकों का स्वामी बन जाता है।
भावार्थ- यदि चन्द्र नाड़ी में स्वर का उदय हो और सूर्यनाड़ी में उसका समापन हो, तो ऐसी स्थिति में मिली सम्पति कल्याणकारी होती है। परन्तु यदि स्वरों का क्रम उल्टा हो, तो कोई लाभ नहीं मिलेगा। अतएव उसे छोड़ देना चाहिए।     

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