Friday, 23 July 2010

Ahankar

अहंकार
अहंकार अच्छे-अच्छों को चौपट कर देता है। वह समर्पण, सच्ची खुशी, ज्ञान और मोक्ष तक में बाधक बनता है। गौतम बुद्ध के साथ आनन्द चालीस साल तक रहे, लेकिन उन्हें बुद्ध के जीते जी बुद्धत्व प्राप्त नहीं हुआ। एक छोटी-सी बात बाधा बन गई, वे बुद्ध के चचेरे भाई थे और उम्र में बुद्ध से बड़े थे। आनन्द को बुद्धत्व प्राप्त नहीं हुआ, लेकिन उनके बाद आए अनेक भिक्षुओं को बुद्धत्व प्राप्त हो गया। बुद्ध के महाप्रयाण के बाद उनके बुद्धत्व प्राप्त शिष्यों ने अपने गुरू के वचनों को लिपिबद्ध करने के लिए महासंघ का आयोजन किया। महासंघ मे आनन्द को शामिल होने नहीं दिया गया, क्योंकि उन्हें बुद्धत्व प्राप्त नहीं था। महासंघ का द्वार बंद हो गया, बाहर बैठकर आनन्द चौबीस घंटे तक रोते रहे। उन्होंने अपनी कमियों को टटोला, तो पता चला उन्होंने शर्ते लगा दी थीं, इसलिए सच्चे अर्थो में दीक्षित नहीं हो सके। उन्होंने बड़े भाई होने के अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए तीन छोटी ही सही, लेकिन शर्ते लगाई थीं, पहली शर्त कि मैं सदा आपके साथ रहूंगा, आप मुझे कहीं भेज नहीं सकेंगे। दूसरी शर्त कि मैं जिस आदमी को आपसे मिलाने लाऊंगा, आप उससे मिलेंगे, इनकार नहीं करेंगे। तीसरी शर्त कि मैं जिस व्यक्ति को दीक्षा देने के लिए आपसे कहूंगा, आप उसे दीक्षा देंगे।
बुद्ध ने जीवनभर इन शर्तो का पालन किया, लेकिन आनन्द सच्चा शिष्य होने से चूक गया। जो बुद्ध के सर्वाधिक निकट था, वही अहंकार और अपनी मनमानी चलाने के प्रयास में चूक गया। अच्छी बात यह रही कि गलती का अनुभव करने पर आनन्द को भी बुद्धत्व प्राप्त हुआ।

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